सरिता की मासूमियत

सरिता की मासूमियत

इस कहानी का प्लॉट और आईडिया मेरे ही एक पाठक ने बताया। उसका कहना है कि यह उसकी आपबीती है। मैं तो केवल उसके अनुभव को शब्द प्रदान कर रहा हूं। आगे कहानी उसी के शब्दों में जारी है-
मेरी दूर की मौसी की दो बेटियां है। बड़ी का नाम सरिता और छोटी का नाम कविता है। छोटी तो भी काफी छोटी है, मगर बड़ी बेटी सरिता, क्या लगती है। वैसे तो उसकी कद-काठी साधारण है, मगर एक चीज जो उसे खास बनाती थी, वह उसका सफेद गोरा रंग और उसके एकदम तने चूंचक। उसकी कुर्ती के ऊपर किसी पहाड़ की तरह हमेशा तने नजर आते थे उसके चूंचक। अकसर मेरे घर आ जाया करती थी। कभी-कभी मुझसे थोड़ा हंसी मजाक भी कर लेती थी। उसकी एक अदा या यूं कहें कि लापरवाही थी कि वह कभी दुपट्टा नहीं पहनती थी। उसकी कुर्ती में से यूं तो उसके चूंचकों की एक झलक तक नहीं मिलती थी। क्या करें उसकी मां इतने तंग गले का सिलवाती थी, मगर एकदम तीर की तने उसके चूंचक हमेशा निमंत्रण से देते प्रतीत होते थे। यही वजह थी मैं उसके प्रति आकर्षित हो गया। मैं उस समय कॉलेज में पढ़ता था और वह भी दो बार इंटर फेल होकर फिर से इंटर की तैयारी कर रही थी, प्राइवेट। उसे पढऩे-लिखने से कोई मतलब नहीं था। बस दिनभर घर का काम या फिर मस्ती। कभी कुछ मांगने तो कभी कुछ देने मेरी मां को मौसी-मौसी करते हुए दिनभर में कई चक्कर लगा देती थी। मगर मैं इतना शर्मीला था कि कभी हिम्मत नहीं हुई कि उसके साथ कुछ गलत हरकत कर सकूं। खैर मुझे मौका तब मिला, जब मेरी दीदी से उसकी थोड़ी ज्यादा पटने लगी और मौसी ने मेरी दीदी से कहा कि इसे थोड़ा पढ़ा दिया करें ताकि यह इस बार तो पास हो जाए। उसे दिन में तो समय मिलता नहीं था, सो रात में किताबें लेकर चली आती और मेरी दीदी का सिर खाती। पढऩे में उसका मन लगता नहीं, दोनों पता नहीं क्या-क्या बातें किया करते या फिर टीवी पर सीरियल देखते।
खैर मुझे मौका तब मिला जब वह पहली बार मेरे घर पर ही सो गई। मै बस इतना चाहता था कि एक बार उसके चूंचक को बिना कपड़ों के छूकर देखूं कि क्या वाकई ये इतने ही तने हैं। बस तो फिर मैने थोड़ी हिम्मत की और रात में सबके सोने के बाद उस कमरे में गया, जहां वह और मेरी दीदी एक ही पलंग पर सोती थीं। मैने देखा कि वह पलंग के एक किनारे पर गहरी नींद में सो रही थी। मैने चादर उठाकर धीरे-धीरे अपना हाथ अंदर सरका दिया। मेरा हाथ सीधा उसके चूंचकों से जा टकराया। मेरे लंड में करंट का एक झटका सा लगा। मैने धीरे से उसकी एक चूंची को थामा ही था कि वह कसमसाने लगी। डर के मारे मेरी जान सूख गई और मैं तेजी से अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया। कुछ देर बाद मैने देखा कि वह भी उठी और बाथरूम जाकर वापस आकर अपने कमरे में चली गई। इसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं उसके पास जाऊं।
इसके बाद तो यह तकरीबन अकसर होने लगा। वह पढऩे आती और पढऩे से ज्यादा दीदी के साथ बातें करती, टीवी देखती और फिर वहीं सो जाती। मैं कभी-कभी उसके बिस्तर के पास जाकर उसके चूंचक छूने की कोशिश करता, मगर पता नहीं क्यों वह गहरी नींद नहीं सोती थी या सो नहीं पाती थी। हर बार जैसे ही मैं उसके शरीर को हाथ लगाता, वह कसमसाने लगती और मुझे भागना पड़ता। इस तरह कई कई महीनें निकल गए, मगर मेरी मुराद पूरी नहीं हो पा रही थी। मै सोचता था कि क्यों चूंचक छूते ही वह कसमसाने लगती। मेरे दिमाग में अचानक एक आईडिया आया कि हो सकता है कि चूंचक इसके शरीर का सबसे सेंसेटिव हिस्सा हो। उसे छूने पर उसे भी करंट जैसा लगता होगा या गुदगुदी होती होगी। तो मैं क्या करूं, मैं इसी उधेड़बुन में लगा रहता था। आखिर मैने सोचा कि क्यों न इसकी चूत छूकर देखी जाए। इसकी चूत भी तो इसकी चूंचक की तरह ही नर्म होगी। और मैने तय कर लिया इस बार जब भी वो मेरे घर सोएगी मैं उसकी चूंचियों को हाथ तक नहीं लगाऊंगा। दो दिन बाद ही यह मौका आ गया।
वह फिर से पढऩे आई और टीवी देखने के बाद दीदी के कमरे में जाकर सो गई। अब तो उसकी मां को भी इस सबकी आदत हो गई थी तो जब भी वह नहीं जाती वे पूछने तक नहीं भेजती थीं। इस बार मैने आधी रात तक का इंतजार किया। मैं आज किसी भी कीमत पर उसके कपड़ों के अंदर हाथ डालना चाहता था। काफी देर बाद जब मुझे भी नींद आने लगी तो मैं उसके बिस्तर के पास गया। इस बार मैं उसके पैरों की तरफ बैठा था। चित लेटी थी। मैने धीरे से हाथ चादर के अंदर सरकाया। उसकी कुर्ती सरककर ऊपर आ गई थी। मेरा हाथ उसके चिकने पेट से टच हुआ, मगर मैने तुरंत हटा लिया। फिर मैने हाथ नीचे किया और सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत पर धीरे से टच किया। उसकी चूत काफी नर्म और गुदाज थी। मैं थोड़ी-थोड़ी देर बाद उसकी चूत को ऐसे ही ऊपर से टच करता रहा। आज वह घोड़े बेचकर सो रही थी शायद। मेरी हिम्मत अब खुलने लगी। मैने अपना हाथ उसकी चूत पर रख दिया और कुछ देर वैसे ही रखा रहने दिया। सलवार के ऊपर से उसकी चूत के गुदगुदेपन का अहसास हो रहा था। फिर मैने हाथ ऊपर सरकाया और नंगे पेट पर हाथ रख दिया। कुछ देर उसकी रिएक्शन का इंतजार करने के बाद दूसरा हाथ भी चादर के अंदर ले गया और उसकी सलवार का नाड़ा पकड़कर थोड़ा उठा दिया ताकि मेरा हाथ अंदर जा सके। मैने हाथ धीरे-धीरे अंदर सरकाया और चड्ढ़ी की इलास्टिक ऊपर कर चूत पर धर दिया। मेरा हाथ अब उसकी नंगी चूत पर था। मेरा लंड झटके से सलामी मार रहा था। उसकी चूत पर मुलायम और रेशमी बाल थे। इतने नरम कि मानो रेशम हो। मै धीरे-धीरे उसकी चूत को सहलाने लगा, फिर एक उंगली उसकी चूत के दरार के बीच ले गया। जैसे ही उंगली से उसकी चूत की दरार में सहलाया, वह तेजी से कसमसाई। मैने उससे भी 'यादा तेजी से अपना हाथ निकाला और अपने कमरे में भाग गया। मगर मुझे डर लग रहा था कि कहीं सरिता जाग न गई हो। अगर जाग गई होगी तो सुबह मेरी खैर नहीं। मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना करता हुआ सो गया।

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शायद भगवान ने मेरी सुन ली थी या फिर हो सकता है कि सरिता की नींद न खुली हो। सुबह उसने किसी से कुछ नहीं कहा और मैने मन ही मन कसम खा ली कि अब इसके पास नहीं जाउंगा। भाड़ में जाए इसकी चूत और चूंची। अरे जान है तो जहान है। अगर इस बार इसकी नींद खुल गई तो मैं तो गया। घर में पिटाई पड़ेगी और पूरी रिश्तेदारी में बदनामी होगी वह अलग। मैने मन में यह फैसला लिया और इसके बाद सरिता से दूर-दूर रहने लगा। वह आती तो भी उसकी तरफ नहीं देखता, क्योंकि उसकी तरफ देखने से मन तो बहकता ही था ना। ऐसे ही दो दिन निकल गए। एक दिन दोपहर का समय कॉलेज से घर आया तो ताला लगा पाया। मौसी से पूछने गया तो उन्होंने बताया कि सभी मेरे चाचा के घर गए थे। आज मेरे चचेरे भाई का जन्मदिन था।
मौसी ने कहा कि तुमको भी बुलाया है।
मैने कहा कि मौसी अभी तो मैं कॉलेज से आ रहा हूं। थोड़ा फ्रेश होकर सोऊंगा इसके बाद ही जाउंगा।
ठीक है, यह कहकर मौसी ने घर की चाबी दे दी।
मैं घर आया और कपड़े उतारकर फ्रेश होकर नहाया और फिर सोने गया। एक घंटे बाद उठा और चाय बनाकर पीते हुए टीवी देख ही रहा था कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। मैने उठकर दरवाजा खोला तो देखा सामने सरिता खड़ी थी। वह कुछ लेकर आई थी। उसके हाथ में कटोरी थी, उसने कहा,
भैया शकर चाहिए। घर पर खतम हो गई। मां भी छोटे मौसा के घर चली गई हैं। मुझे चाय पीनी है।
मैने नजरें चुराते हुए कहा, अंदर किचन से ले लो और फिर से टीवी देखने लगा।
कुछ देर बाद वह किचन से लौटी तो उसके हाथ खाली ही थे। वह अचानक मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसने कहा,
भैया एक बात पूंछू। सच-सच बताओगे।
मैने कहा हां पूछो। क्या बात है।
उसने कहा, भैया रात में मैं जब सो जाती हूं तो आप मेरे शरीर को क्यों छूते हो।
यह सुनकर मेरा तो दिल धक्क से रह गया। यानी इसे सब पता चल गया। हे भगवान अगर इसने किसी को कुछ बता दिया तो। मैं हकलाने लगा..
छूता हूं.. कब छूता हूं.. सरिता तुम्हें कोई वहम हुआ या सपना देखा होगा।
वहम नहीं भैया मुझे पता है कि रात मे मैं जब सो जाती हूं तो आप आकर मुझे यहां-वहां छूते हो।
नहीं सरिता, मैं भला क्यों छुउंगा। मुझे क्या जरूरत तुम्हे छूने की।
वो मुझे नहीं पता, मगर मुझे पक्का पता है कि आप मुझे छूने के लिए रात में आते हो। वह अब जिदभरे स्वर में बोली।
देखो सरिता तुम गलत सोच रही हूं। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।
नहीं भैया आपने मुझे छुआ है, पता नहीं कहां-कहां हाथ लगाया है।
अच्छा कहां हाथ लगाया। अब मुझे गुस्सा आने लगा था।
इसके बाद उसने जो हरकत की उसकी तो मुझे कल्पना तक नहीं थी। उसने अपना हाथ सीधे अपनी चूत पर रखा और कहा,
आपने मुझे यहां हाथ लगाया था। मुुझे सब पता है।
उसकी इस हरकत पर एक बार को तो मैं चकरा गया, मगर फिर थोड़ी हिम्मत जागी कि कोई लड़की यदि किसी लड़के के सामने इस तरह की हरकत कर रही है, मतलब खुला इशारा कर रही है।
मैने शरारती स्वर में पूछा, कहां हाथ लगाया था?
यहां। उसने एक बार फिर से अपनी उंगली अपनी चूत पर रखकर कहा।
इस बार मैं उठा और अपनी उंगली उसकी कुर्ती पर उस स्थान पर रखकर, जहां उसकी चूत थी, मैने पूछा, यहां।
हां वो बोली, बिल्कुल यहीं, मगर यह कहते हुए उसका स्वर कांप रहा था।
मैने कहा सरिता मुझे ठीक से समझ नहीं आ रहा तुम कहां की बात कर रही हो।
इस बार उसने कुर्ती ऊपर उठाकर सलवार के ऊपर से चूत पर उंगली रखकर कहा यहां।
मैं भी मस्ती के मूड में आ गया था। मैने भी उसकी उंगली के पास अपनी उंगली रखकर पूछा, यहां?
हां वह कांपते स्वर में बोली।
मैने कहा रुको सरिता मुझे ठीक से समझने दो। यह कहकर मैने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार उसकी जांघों से सरकती हुई नीचे जा गिरी। उसने एक शब्द नहीं बोला, मगर शर्म से उसका मुंह लाल हो रहा था। मेरी आंखों के सामने तो जैसे बिजली ही चमक गई। उसकी गोरी जांघों के बीच नीली चड्ढी गजब ढा रही थी। मैने उसकी चड्ढी के ऊपर से ही चूत पर उंगली रखकर पूछा,
क्या यहां.. छुआ था?
हां, वह आहिस्ता से बोली।
मगर मैने ऐसे तो नहीं छुआ था। यह कहकर मैने उसकी चड्ढी भी सरका दी। उफ कितनी सुंदर थी उसकी चूत। मेरी आंखों में जैसे आग लग गई। दिल एक बार जोर से धड़का और फिर दौडऩे लगा। शर्म के मारे उसकी भी आंखें बंद हो गईं और मेरे हाथ-पैर भी उत्तेजना से कांप रहे थे। मेरा लंड तो मानो झटके खा-खाकर पागल हुआ जा रहा था। मैने इस बार उसकी नंगी चूत पर हाथ रखा और फिर से पूछा,
क्या यहां हाथ लगाया था?
इस बार वह कंपकंपाते स्वर में अटक-अटककर बोली, हं..हां.. भै..य्..या.. य..हीं.. छ..छ..छु..आ.. था..।
मैने उसके चेहरे की तरफ देखा, उसका मुंह शर्म के मारे लाल सुर्ख हो गया था। गोरे चेहरे पर यह लालिमा गजब ढा रही थी। उसकी आंखें अब भी बंद थीं। होंठ धीरे-धीरे कंपकंपा रहे थे। मैने धीरे-धीरे उसकी चूत को सहलाते हुए कहा सरिता यहीं छुआ था न। वह हर बार लरजते स्वर में अं..हां.. बस यही करती रही। फिर मैने चेहरा आगे बढ़ाया और धीरे उसकी चूत पर चूम लिया। उसका पूरा शरीर कांप उठा। मैने एक ही चुंबन से बस नहीं किया बल्कि उसकी रेशमी, मुलायम, मखमल जैसी चूत को चूमता चला गया। उसके शरीर में इतनी तेज कंपकंपाहट हो रही थी कि शायद उससे खड़ा रहना मुश्किल होने लगा, तभी तो वह धम्म से वहीं पड़े सोफे पर गिर सी गई। मैने पूछा..
क्या हुआ सरिता..?
कुछ नहीं भैय्या.. मगर आप यह क्या कर रहे हो। मुझे कुछ अजीब सा हो रहा है।
मुझे पता था कि अब तक उसका शरीर बिलकुल अनछुआ था। इसीलिए उसकी यह हालत हो रही है। मैने कहा, कुछ नहीं होगा, सरिता।
भैय्या ऐसा मत करो न प्ली•ा.. मुझे लगता है मेरी जान निकल जाएगी।
मैने धीरे उसके होंठों को चूम लिया और कहा, कुछ नहीं होगा सारू। मैं हूं न।
मेरे इतना कहते ही वह मुझसे लिपट गई। मैं प्यार से उसके बालों में उंगलिया चलाने लगा।

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सरिता काफी देर तक मुझसे यूं ही लिपटी पड़ी रही। मैं प्यार से उसके बाल सहलाता रहा। इसके बाद मैने उसे धीरे से गोद में उठाया और बिस्तर पर लेटा दिया। उसकी कुर्ती को उतार और फिर उसकी ब्रा को भी अलग कर दिया। बिस्तर पर सरिता का नंगा जिस्म आग लगा रहा था। उसने अपनी आंखें अब तक नहीं खोली थीं। मैने अपने भी सारे कपड़े उतारे और उसके पास जाकर लेट गया। धीरे से उसके कान में फुसफुसाकर बोला, आंखें खोलो सरिता।
उसने न में सिर हिला दिया।
मैने कहा ठीक है, मत खोलो, मैं तुम्हें मजबूर कर दूंगा। यह कहकर मैने उसके होठों को धीरे-धीरे चूमा और फिर नीचे सरकते हुए उसके तने हुए चूंचक पर मुंह ले आया। उसके चूंचक वाकई तीर की तरह तने थे, बिना ब्रा के भी। गुलाबी निपल को मुंह में लेकर हौले-हौले जीभ से सहलाने लगा और वह आनंद में सिसकारियां भरने लगी। दोनों चूंचक को बारी-बारी मुंह से प्यार किया। जीभ का जादू दिखाया। इधर मेरा हाथ उसकी चूत पर मानो चित्रकारी सी कर रहे थे। मेरा हाथ उसकी चूत पर आहिस्ता-आहिस्ता हरकत कर रहे थे और वह हर बार धीरे से अपनी कमर को हिलाकर उसका जवाब दे रही थी। चूंचकों पर प्यार लुटाने के बाद मैं नीचे सरका और उसकी रेशमी चूत को चूम लिया। उसकी कुंवारी चूत से आ रही खुशबू मुझे पागल बनाए जा रही थी। इसलिए मैने चूत की दरार के बीच अपनी जीभ लगाई और कुछ इस तरह से हरकत की कि उसकी कमर में थिरकन होने लगी। वह बोली,
ओह...आह...सी...ब..ब..स करो न भै...य्या अब नहीं सहन हो रहा है।
मेरी जीभ उसकी चूत के बीच थिरकती रही। रेशम जैसे बाल मानो मेरी प्यास और बढ़ा रहे थे। मै उसकी चूत की दरार को खोलकर उस गुलाबी हिस्से को चाटने लगा जिसे उसने भी अब तक शायद गौर से नहीं देखा होगा और वह जोर-जोर से अपनी कमर उचकाने लगी। उसकी चूत मेरी लार से पूरी तरह गीली हो चुकी थी। वह मेरा सिर जोर-जोर से अपनी चूत पर दबा रही थी और सिसक रही थी। उसके पैर अपने आप विपरीत दिशा में खुल गए थे ताकि उसकी चूत की दरार और फैल जाए और मेरी जीभ को चित्रकारी करने के लिए ज्यादा जगह मिल जाए। अचानक मैने अपना मुंह उसकी चूत से हटा लिया और उसके चेहरे की तरफ देखने लगा। उसका गोरा चेहरा इस तरह लाल हो रहा था, मानो सारा खून चेहरे पर ही सिमट आया हो। उसकी आंखों के किनारों से आंसू बह रहे थे। मैं जानता था कि ये आंसू उस आनंद ने दिए हैं, जिसमें अभी वह डूब रही थी या शायद अब भी डूबी हुई है। जब काफी देर तक मैने अपना मुंह उसकी चूत पर दोबारा नहीं रखा तो उसे लगा कि मैं चला गया और उसने पट से आंखें खोल दी। मुझे सामने देख वह और शरमा गई और फिर से आंखें बंद कर ली। मैने कहा,
सारू अब तो आंखें खोल दो। अब कैसी शर्म।
नहीं भैय्या मुझे शरम आ रही है। हाय राम मैने कैसे यह सब कर लिया। वह भी आपके साथ।
ठीक है आंखें नहीं खोलना तो और इतनी ही शरम आ रही है तो ये लो कपड़े और पहनकर जाओ।
मेरा यह कहना था कि उसने फिर से आंखें खोल दी। वह शर्मीली सी मुस्कुराहट के साथ बोली आप बहुत गंदे हो।
मैं हंस दिया और फिर से उसकी चूत पर मुंह लगा दिया। कुछ देर उसकी चूत चाटता रहा फिर उसके ऊपर लेट गया। जैसे ही मैने अपना लंड उसकी चूत के छेद से लगाया, वो तड़प उठी। एक बारगी तो उसकी कमर में थिरकन हुई। मैं तब तक उसके होंठों पर अपने होंठ रख चुका था और मेरा हाथ लंड को चूत के बीच सेट कर ही रहा था कि वह अचानक बोल पड़ी,
भैय्या यह सब मत करो, प्लीज़। अब इससे आगे कुछ मत करो, नहीं तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी।
अब बचा ही क्या है सरिता। सब कुछ तो हो गया हमारे बीच।
हां भैय्या, मगर यह आखिरी काम मत करो। मुझे पता है कि इसके बाद मेरा कौमार्य भंग हो जाएगा और आप ही सोचिए कि शादी के बाद इसका परिणाम भी मुझे ही भुगतना होगा।
मैं चाहता था कि अभी अपना लंड उसकी चूत में घुसेड़ दूं। मगर वह ठीक कह रही थी। मिडिल क्लास फैमिली में इन बातों का बड़ा महत्व होता है। मैं यह भी जानता था कि यदि मैने उसकी चुदाई कर दी तो उसकी चाल-ढाल से उसकी मां तो पता चल ही जाएगा। आज उसने मुझे जो सुख दिया था, उसके बाद मैं उसे कोई भी दुख नहीं पहुंचाना चाहता था। इसलिए मैने कहा,
ठीक है सरिता, जैसा तुम कह रही हो, वैसा ही होगा। मगर तुम्हें अब एक काम करना होगा ताकि मेरी भी उत्तेजना शांत हो सके और मैं इसके बारे में न सोचूं।
ठीक है भैय्या मैं करूंगी। बोलिए क्या करना है।
इसके बाद मै लेट गया और उसके हाथों में अपना लंड पकड़ाते हुए बोला, अब इस पर तुम अपनी गीली जीभ का कमाल दिखाओ। इसे ठीक किसी लॉलीपाप की तरह चूसो तो मेरी उत्तेजना शांत होगी।
ठीक भैय्या, मैं आपके लिए यह जरूर करूंगी। आखिर आपने आज मुझे जिंदगी का सबसे बड़ा आनंद दिया है।
इतना कहकर सरिता उठकर बैठ गई और मेरे लंड को एक बारगी चूम लिया। फिर उस पर जीभ फिराने लगी और जीभ फिराते-फिराते अपने मुंह में डालकर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। मैं आनंद से डूबने लगा। मगर मुझे पता था कि ऐसे चूसती रही तो काफी समय लगेगा, इसलिए मैने सरिता को कहा कि अपनी चूत मेरे मुंह पर रखकर लेट जाए। उसे भी जैसे यह चाहिए था। वह अपनी चूत को मेरे मुंह पर रखकर मेरे ही ऊपर लेट गई। मैने अपना मुंह उसकी चूत में चलाना शुरू किया और वह मेरे लंड को चूसने में लगी रही। मेरी जीभ उसकी चूत के छेद में पहुंच चुकी थी और मैं उस कुंवारी चूत को अपनी जीभ से ही चोदने लगा ताकि उसे चुदाई का भी मजा मिल जाए और कौमार्य भी भंग न हो। वह भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, जोर-जोर से मेरे लंड को चूस रही थी। कुछ ही देर बाद मेरा शरीर पहले ऐंठने लगा और मेरे लंड से गर्म सफेद द्रव्य निकला, जो उसके मुंह में गिरा। उसने तुरंत मेरा लंड मुंह से निकाल दिया और उस द्रव्य को थूककर बोली,
यह क्या है, भैय्या। गंदा-गंदा सा आपने मेेरे मुंह में निकाल दिया।
कुछ नहीं सरिता। बस अब हो गया। मेरी उत्तेजना शांत हो गई।
ठीक है वह बोली और उठ गई। उसके उठने के पहले मैने एक बार फिर उसकी चूत को चूम लिया। इसके बाद उसने कपड़े पहने और चलने लगी तो मैने पूछा।
फिर कब आओगी।
अब कभी नहीं भैय्या। उस दिन रात में जब आपने मेरी चड्ढी में हाथ डाल दिया था तो मेरे मन में पता नहीं क्यों अजीब से बैचेनी जाग गई। इसीलिए मैने यह सब करना मंजूर किया। मगर अब नहीं प्ली•ा भैय्या।
क्यों नहीं सरिता। हम इसके आगे कभी नहीं बढ़ेंगे।
नहीं भैय्या। बात वो नहीं है। अगर किसी को पता चला तो मैं बदनाम हो जाउंगी और फिर मेरे सामने मरने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होगा। इसलिए अब आप कभी इस बात के लिए जोर मत डालना।
मगर सरिता.., मैने कहना चाहा तो वह बात काटकर बोली,
नहीं भैय्या यह ठीक नहीं। मेरे और आपके लिए भी। अब मैं आपके घर पर रात में भी नहीं रुकूंगी, नहीं तो किसी ऐसे ही कमजोर पल मैं खुद पर कंट्रोल नहीं रख पाऊंगी।
मुझे यकीन था कि जैसे आज आई है, वैसे ही वह फिर आएगी, मगर दोस्तों यह था, सरिता के साथ मेरा पहला और आखिरी यौन अनुभव, जिसमें दोनों ने आनंद का सबसे बड़ा पल जिया, मगर फिर उसने कभी खुद को कमजोर नहीं होने दिया।

the end
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